मुज़फ्फरनगर, 31 मार्च (बु.)। कोरोना को लेकर केंद्र और प्रदेश की सरकारें तमाम माथा पच्ची कर रही हैं, लेकिन जानबूझ कर अनजान बनने वाले लोग देश भर में लॉक डाउन और जागरूकता अभियान को पलीता लगा रहे हैं। ऐसे में जबकि नवरात्र होते हुए भी तमाम मंदिर बंद हैं और लोग कन्या पूजन भी सांकेतिक करने के साथ खाद्यान्न जरूरतमंदों तक पहुंचाने की अपील कर रहे हैं, ऐसे में दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन मरकज के साथ मवाना में एक धर्मस्थल से बड़ी सं या में लोगों के मिलने के बाद इस बात की मांग बढ़ रही कि ऐसे संस्थानों व मदरसों पर खास अभियान चलाया जाए, जहां बाहर से आने वाले लोग रह रहे हो सकते हैं। फिलहाल प्रशासन जिले की सीमाएं सील कर चुका है और बाहर से आने वाले किसी भी व्यक्ति को सीधे क्वारेंटाइन सेंटरों पर भेजा जा रहा है।
केंद्र सरकार द्वारा पूरे देश में लॉक डाउन लागू करना कोई आसान और मजाक फैसला नहीं है, लेकिन अभी भी कुछ लोग इसे मजाक समझ रहे हैं या जानबूझकर सरकारी निर्देशों की अनदेखी कर बड़ी परेशानी मोल ले रहे हैं और साथ ही पूरी व्यवस्था के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। इनमें कुछ संस्थानों की व्यवस्था भी जि मेदार है। हालांकि बड़े खतरे को भांपते हुए आज दारुल उलूम देवबंद की ओर से भी जरूरत पडऩे पर अपनी बिल्डिंग को क्वारेंटाइन या अन्य किसी उपयोग के लिए प्रशासन को देने की घोषणा की गई है, लेकिन दिल्ली के मरकज निजामुद्दीन में 14 सौ से अधिक लोगों के पाए जाने और इनमें विदेशियों के साथ करीब दो सौ संदिग्ध कोरोना लक्ष्णों वाले लोग मिलने के बाद इस बात को लेकर आवाज तेज हो रही है कि इस तरह के तमाम संस्थानों व मदरसों आदि की जांच के लिए विशेष अभियान चलाया जाए और वहां के प्रबंधन को इस बात के लिए आगाह किया जाए कि इस तरह के मामलों को छिपाना आत्मघाती ही नहीं बल्कि समाज के लिए भी बेहद घातक है। प्रशासन ने हालांकि 12 मार्च के बाद से जिले में बाहर से आए लोगों के स्वास्थ्य की जांच की बात कही है। इसका उद्देश्य भी ऐसे संदिग्ध लोगों को अलग थलग करना है, जो किसी भी तरह से कोरोना को लेकर संदेह की घेरे में आ सकते हैं। हालांकि अभी भी अज्ञानता या जानबूझ कर ऐसे लोगों को छिपाए जाने के मामले बिना किसी कारण अज्ञात भय के चलते सामने आ रहे हैं, जो कोरोना प्रभावित महाराष्ट्र, दिल्ली या अन्य किन्हीं स्थानों से यहां आए हैं। इनमें वहां नौकरी करने वाले या तब्लीगी जमात से लौटे या जमात के साथ आए लोग भी शामिल हो सकते हैं। शहर से लेकर ग्रामीण अंचल तक इन लोगों की मौजूदगी संभव है। जो लोग इसे लेकर झिझक रहे हैं, उन्हें यह समझना जरूरी है कि यह बीमारी केवल उनके लिए नहीं है, बल्कि उन लोगों के लिए भी खतरनाक है जिनके साथ वे रह रहे हैं या जिन लोगों के संपर्क में आ रहे हैं। ऐसे लोगों को अपने और समाज के स्वास्थ्य के लिए इस बात को अपनी जि मेदारी समझनी होगी कि ऐसे मामलों को लेकर केवल प्रशासन, पुलिस या स्वास्थ्य विभाग की सतर्कता ही काम नहीं आने वाली है। इसके लिए तमाम लोगों और संस्थाओं का सहयोग भी बेहद जरूरी है। विदेश से आए लोगों की जानकारी तो मिल सकती है, लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों से पिछले दो सप्ताह के दौरान जिले में आए लोगों का पता लगाना पुलिस और प्रशासन के लिए भारी है। यह काम ऐसे लोगों के परिजनों और ऐसे संस्थानों और इदारों के सहयोग के बिना संभव नहीं है, जो उनके बारे में जानते हैं। शासन ने ग्राम प्रधानों व जन प्रतिनिधियों को भी इसके लिए जि मेदारी दी है। फिलहाल अभी आ रहे लोगों के लिए बीआईटी समेत कई स्थानों पर क्वारंटाइन सेंटर बनाए गए हैं, जहां एहतियात के तौर पर ऐसे लोगों को भेजा जा रहा है ताकि 14 दिनों के भीतर उनके अंदर अगर कोई वायरस छिपा है तो इसका पता चल सके और उसके बाकी समाज में फैलने से रोका जा सके।