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Saturday, October 12, 2024

कालाबाजारियों की जेबें भरने से बेहतर ठेेके ही क्यों नहीं खोल देती सरकार

कालाबाजारियों की जेबें भरने से बेहतर ठेेके ही क्यों नहीं खोल देती सरकार

मुजफ्फरनगर, 14 अप्रैल (बु.)। लॉक डाउन के चलते शासन की कुछ नितियों से शासन को लाखों रुपये प्रतिदिन राजस्व हानि की चपत लग रही है और पिछले रास्ते से नशे का कारोबार करने वाले लोग मालामाल होते दिखाई पड़ रहे हैं। शराब का 65 रुपये में बिकने वाला देशी पव्वा ब्लैक में 150 रुपये से ऊपर बिकता दिखाई पड़ रहा है, वहीं अग्रेंजी शराब की भी कुछ ऐसी ही हालत है। 450 रुपये में मिलने वाली बोतल का दाम अब 1100 रुपये हो चुका है। सरकार स्वीकार करे या नजरअंदाज करे, शराब एवं नशे से जुड़ी बहुत सी वस्तुएं जैसे गुटखा, सिगरेट-बीड़ी एवं तम्बाकू से बने अन्य पदार्थ आवश्यक वस्तुओं की गिनती में ही आने लगे हैं, जिस व्यक्ति को शाम को एक पैग शराब का लेना ही है, वह अपने आप को बेचकर भी उसे खरीदने को तैयार है। यूं तो दुनिया में कई प्रकार के नशे होते हैं, और शराब और गुटखे जैसी वस्तुओं का नशा तो नशा करने वाले अद्भुत ही बताते हैं। नशा करने वाले लोगों की माने तो वह खाना खाये बगैर तो रह सकते हैं, लेकिन बगैर पीये उन्हें नींद ही नहीं आती, हालांकि नशा करने का समर्थन किसी भी प्रकार से ठीक नहीं होता, लेकिन फिर भी स्वयं विभिन्न डॉक्टर मानसिक टेंशन दूर करने के लिए अपने मरीजों को हल्की-फुल्की वाइन लेने की सलाह देने से नहीं चूकते हैं। वह बात अलग है कि डॉक्टर सिर्फ एक पैग पीने की सलाह देता है और डॉक्टर की सलाह का दम भरकर भारतीय व्यक्ति पूरी बोतल डकार जाता है, जिससे शरीर को भरपूर हानि पहुंचती है, क्योंकि इंडियन कल्चर में शराब के साथ खाने वाली पोष्टिक वस्तुओं का सेवन जैसे पनीर, काजू, सलाद आदि का सेवन, उतनी मात्रा में नहीं हो पाता, जितनी मात्रा में शराब पी जाती है, जिसके कारण ज्यादा शराब पीने से लोगों के लीवर खत्म हो जाते हैं। यह बात भी बहुत हद तक सच है कि हर चीज का आनंद एक लिमिट तक लिया जाये, तो उसे अच्छा ही कहते हैं और जब वह वस्तु इंसान पर हावी हो जाये, तो इंसान में लाखों बुराइयां उत्पन्न होने लगती है। हमारे समाज में बहुत अधिक नशा करने के बाद लोग अपनी पत्नियों व बच्चों के साथ भी निरंकुश होकर मार-पिटाई करते साफ दिखाई पड़ते हैं, इसी कारण महिलाएं अक्सर सरकार से शराब पर प्रतिबन्ध लगाने की गुहार लगाती दिखाई पड़ती है। हालांकि शराब पर प्रतिबंध लगाना सरकार के लिए कोई हंसी खेल नहीं, क्योंकि सरकार को अरबों रुपये प्रतिवर्ष की राजस्व की हानि होती है और राजस्व की हानि के साथ-साथ शराब की लत न छुडाने वाला व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार होने के साथ-साथ तड़पता अथवा बिलबिलाता दिखाई पड़ता है। अब लॉक डाउन के चलते शुरू के दो दिन तो सरकार की मंशा यह थी कि शराब को प्रतिबंधित नहीं किया जायेगा, लेकिन एका-एक शासन के आदेश आये और शराब के ठेकों को अचानक से बंद कर दिया गया। जैसे ही ठेके बंद होने की सूचना शराब के सेवन करने वाले लोगों में पहुंची, तो उन्होंने आनन-फानन में लगभग एक सप्ताह का कोटा तो लेकर रख लिया, लेकिन सरकार का आदेश पूरे लॉकडाउन में नहीं बदलेगा, ऐसी शराब पीने वालों को दूर-दूर तक उम्मीद नहीं थी। ऐसे में पिछले 15 दिनों से शराब का अवैध रूप से कारोबार धड्ल्ले से जारी है, फर्क सिर्फ इतना आया है कि जो बोतल सरकारी व अग्रेंजी शराब के ठेकों से जिस रेट में मिलती थी, उसका दाम शराब का अवैध व्यापार करने वाले दुगुने से ज्यादा वसूल करते हैं। ऐसे में सरकार को दोहरी मार पड़ गयी है। एक ओर जहां राजस्व हानि हो रही है, दूसरी ओर शराब की कालाबाजारी चरम पर है और ऐसा नहीं है कि ये सब बातें भोले-भाले प्रशासनिक अधिकारियों की जानकारी में नहीं है। भोले-भाले प्रशासनिक अधिकारियों को हर बात का पता है, लेकिन उनकी जुबां बंद रहने के विभिन्न कारण है, जिन्हें यहां लिखना उचित नहीं। अब यह फैसला तो सरकार को लेना होगा कि वह कालाबाजारी करने वाले शराब माफियाओं की जेबें भरने में उनका सहयोग करती हैं, या फिर नियमित रूप से शराब पीने वाले लोगों को अपनी सरकारी अथवा गैर सरकारी दुकानें खोलकर उन्हें वाजिद रेट में शराब उपलब्ध कराती है। यही हाल शराब के अलावा तम्बाकू से जुड़ी वस्तुओं का भी हैं। कल तक 5 रुपये का बिकने वाला गुटखा आज भी भारी मात्रा में उपलब्ध है, बस वह गुटखा आपको चोरी के रास्ते 10 रुपये में उपलब्ध कराकर आप पर अहसान किया जायेगा। गुटखे का व्यापार करने वालों की भी पिछले 15 दिनों में पौ-बारह हुई है और पिछले 15 दिनों में गुटखा बेचने वाले व्यापारियों ने मोटा मुनाफा कमाया है, हालांकि उन्हें इसका कुछ हिस्सा सरकारी कर्मचारियों को भी बांटना पड़ा है। यदि यह बात भी कहीं झूठ लगे तो उच्चाधिकारी अपनी वर्दी उतारकर सिविल ड्रैस में बाजारों में जाकर उक्त सारी चीजों की बखूबी जांच कर सकते हैं और यदि उनसे यह जांच न हो पाये तो हमारी टीम उनकी मदद करने के लिए सदैव हाजिर है। ऐसा ही कुछ हाल ग्रामीण क्षेत्रों में हुक्का कही जाने वाली बीड़ी का भी साफ दिखाई पड़ रहा है। बीड़ी भी पिछले 15 दिनों से ग्रामीण क्षेत्रों में दुगुने भाव बिक रही है, क्योंकि बीड़ी की लत भी ऐसी बताई गयी कि कुछ लोगों को बिना बीड़ी पीए शौच की समस्या से जूझना पड़ता है और बीड़ी ना मिलने पर वे दिनभर गैस के भी शिकार रहते है। ऐसा बताया जाता है कि हुक्का गुडगुडाने वालों को कभी गैस की समस्या से नहीं जूझना पड़ता है। कुल मिलाकर लॉकडाउन के बाद सरकार द्वारा बंद की गई नशे से जुड़ी उक्त सभी वस्तुओं के कारण आम जन में अफरा-तफरी का माहौल दिखाई पड़ रहा है और यह सब चीजें दुगुने से भी अधिक रेटों में उपलब्ध होती दिखाई पड़ रही है।

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