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Tuesday, November 26, 2024

सम्पादक की कलम से…

24 JANUARY 2023

सम्पादकीय

एक विवादासपद डॉक्यूमेंट्री

एक धारणा ग्रस्त विदेशी समाचार एजेंसी ने दो एपिसोड की एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है जिसका नाम है, ‘इंडिया द मोदी क्वेश्चन’।इसका पहला एपिसोड 17 जनवरी को ब्रिटेन में प्रसारित हो चुका है।अगला एपिसोड 24 जनवरी को प्रसारित होने जा रहा है।पहले एपिसोड में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के आरम्भिक राजनीतिक जीवन को दिखाया गया है जिसमें वे भारतीय जनता पार्टी में आगे बढ़ते हुए, गुजरात के मुख्यमंत्री के पद पर पहुँचते हैं।यह एजेंसी अपने आप कम और दूसरों के हवाले से ज़्यादा ख़बरें गढ़ने का काम करती है और जिनसे यह एजेंसी बात करके ख़बरें गढ़ती है वे भी निष्पक्ष नहीं होते उन पर भी विभिन्न धारणाएं हावी रहती हैं।कुल मिलाकर इसे आदर्श समाचार एजेंसी नहीं कहा जा सकता।विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने यह डॉक्यूमेंट्री देखी और पाया कि इसमें सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया की साख पर सवाल हैं।साथ ही सरकार पर भी कई गैर-जिम्मेदाराना आरोप हैं।तमाम तथ्यों को परखने के बाद पाया गया कि यह डॉक्यूमेंट्री भारत की निजता व संप्रभुता का हनन करती है, इसीलिए यूट्यूब को इसे हटाने को निर्देश दिया गया।इस डॉक्यूमेंट्री में भारत की संप्रुभता और अखंडता को कमतर दिखाने की कोशिश की गई है और इसका विपरीत प्रभाव देखने को मिल सकता है।अधिकारियों ने यह भी कहा कि इस डॉक्यूमेंट्री से दुनिया के दूसरे देशों के साथ दोस्ताना संबंध प्रभावित हो सकते हैं।केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया द मोदी क्वेश्चन’ को यूट्यूब पर ब्लॉक करने का आदेश जारी किया है।सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर से भी करीब 50 ऐसे ट्विट्स को हटाने को कहा गया है,जिनमें इस डॉक्यूमेंट्री के लिंक साझा किए गए थे।सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव ने आईटी रूल्स 2021 के तहत दी गई आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ब्लॉक करने का आदेश जारी किया। यूट्यूब और ट्विटर, दोनों ने इन आदेशों को मान भी लिया है।आईटी एक्ट 2021 के रूल नंबर 16 में किसी आपात स्थिति में सरकार द्वारा किसी विषय को ब्लॉक करने से संबंधित दिशा निर्देश दिए गए हैं। आईटी रूल्स को इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड 2021 के नाम से भी जाना जाता है, जो 25 फरवरी 2021 से प्रभाव में आया था। इस रूल में कहा गया है कि किसी आपात स्थिति में अगर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव को लगता है और वह संतुष्ट हैं कि जनहित में किसी सूचना को ब्लॉक करना चाहिए तो वह जरूरी कदम उठा सकते हैं।रूल में कहा गया है कि मंत्रालय के सचिव संबंधित व्यक्ति, पब्लिशर या कंप्यूटर होस्ट को बिना उसका पक्ष सुने, ऐसी सूचना को फौरन हटाने के लिए कह सकते हैं। ऐसे आदेश का आधार राष्ट्रीय सुरक्षा और जनहित हो सकता है।केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कहा है कि यह डॉक्यूमेंट्री इंडिया द मोदी क्वेश्चन पूरी तरह प्रोपेगेंडा है,इसमें सब कुछ एक तरफा है और औपनिवेशिक मानसिकता से चीजें दिखाई गई हैं।इस डॉक्यूमेंट्री को खुद एजेंसी ने भारत में जारी नहीं किया, बल्कि यह यूट्यूब पर कुछ समय के लिए जारी हो गई थी।सरकार के इस फ़ैसले को विपक्षी राजनीतिक दलों ने सेंसरशिप कहा है।कांग्रेस के कम्यूनिकेशन इंचार्ज जयराम रमेश ने ट्वीट किया कि यह सेंसरशिप है।जयराम रमेश के ट्वीट पर किसी ने कहा है कि आपको तो मोदी विरोध ही रुचिकर लगता है चाहे वह किसी भी दृष्टिकोण से किया गया हो, अन्य कई ट्वीट में जयराम रमेश पर तंज़ कसे गए हैं।इस धारणा ग्रस्त एजेंसी में ऐसे लोगों की भरमार है जो भारत सरकार विरोधी और मोदी विरोधी एजेंडा चलाते हैं, जिनके लिए पत्रकारिता का मतलब मोदी विरोध और मोदी विरोधियों की बातों को आगे बढ़ाना ही है।तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने आरोप लगाया है कि इस डॉक्टयूमेन्ट्री से जुड़े उनके एक ट्वीट को ट्विटर ने डिलीट कर दिया है।इस बारे में ट्विटर पर उन्होंने लिखा, ये सेन्सरशिप है। ट्विटर इंडिया में इस डॉक्टयूमेन्ट्री से जुड़ा मेरा ट्वीट हटा दिया है।तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने भी ट्वीट कर कहा कि सरकार हर हाल में यह सुनिश्चित करना चाहती है कि एक भी आदमी इस डॉक्यूमेंट्री को नहीं देखे। इन सब विपक्षी दलों के नेताओं के ट्वीट्स से पता चलता है कि यह डॉक्यूमेंट्री मोदी विरोधियों को अच्छी लग रही है।दूसरी तरफ़ इसे देखने वाले ज़्यादातर लोग इस डॉक्यूमेंट्री को एक विशेष धारणा से ग्रस्त मानसिकता से उपजी विवादास्पद सामग्री बता रहे हैं।इस डॉक्यूमेंट्री से क़ानून मंत्री किरेन रीजीजू खफा हैं। उन्‍होंने कहा कि भारत की छवि ऐसे ‘दुर्भावनापूर्ण अभियानों’ से नहीं गिराई जा सकती। सिलसिलेवार ट्वीट्स में रीजीजू ने कहा कि देश में हर समुदाय के साथ अल्पसंख्यक भी सकारात्मक रूप से आगे बढ़ रहा है। कानून मंत्री ने लिखा कि पीएम मोदी की आवाज 1.4 बिलियन भारतीयों की आवाज है। रीजीजू ने कहा कि भारत में अभी भी कुछ लोग औपनिवेशिक नशे से दूर नहीं हुए हैं।वे इस एजेंसी को सुप्रीम कोर्ट से ऊपर मानते हैं।उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोग अपने नैतिक आकाओं को खुश करने के लिए किसी भी हद तक देश की गरिमा और छवि को कम करने में लगे हैं।इस डॉक्टयूमेन्ट्री से जुड़े विवाद के बीच 300 से अधिक जानेमाने लोगों ने इस धारणा ग्रस्त एजेंसी के ख़िलाफ़ एक पत्र लिखकर कहा है कि ये डॉक्टयूमेन्ट्री भारत की छवि ख़राब करने की साज़िश है।इसमें 13 रिटायर्ट जज, 133 रिटायर्ड नौकरशाह, 33 राजदूत और सशस्त्र बल के 156 अधिकारी शामिल हैं।इस पत्र में कहा गया है कि ये दुष्प्रचार का एक हिस्सा है। इसमें पूर्वाग्रह, निष्पक्षता की कमी और औपनिवेशिक मानसिकता को दिखाता है।भारत ने इस डॉक्युमेंट्री को पूर्वाग्रह से ग्रसित और खास नैरेटिव के प्रचार का अजेंडा बताया है।विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह फिल्म भारत में प्रसारित नहीं हुई है, लेकिन जितना भी इसके बारे में सुना है, यह पूरी तरह दुष्प्रचार का हिस्सा है और एक खास नैरेटिव को प्रचारित करने की साजिश है।

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