23 JANUARY 2023
सम्पादकीय
सम्मेद शिखर जी और आदिवासी
झारखण्ड बचाओ मोर्चा सम्मेलन को लेकर काफ़ी चर्चाएं हैं। इस मोर्चे के केंद्र में जैन समुदाय द्वारा गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ियों पर एक तीर्थस्थल पर अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता के दावे और कुछ आदिवासी समुदायों द्वारा अपनी स्वयं की धार्मिक स्वतंत्रता पर जोर देने के बीच का संघर्ष है।श्री सम्मेद शिखर जी को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने के विवाद के बाद यह एक नया विवाद शुरू हो गया है।मोर्चा पिछले 22 वर्षों में आदिवासी समुदाय की उपेक्षा को लेकर सवाल उठा रहा है।इसमें पारसनाथ पहाड़ियों पर अपने धार्मिक अनुष्ठानों का अभ्यास करने के लिए अपने दावे को भी ये नेता आगे बढ़ा रहे हैं।इन्हीं पहाड़ियों पर जैन तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी है।झारखण्ड बचाओ मोर्चा में कई प्रमुख सदस्य हैं, जिनमें सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक लोबिन हेम्ब्रोम और ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के पूर्व सदस्य नरेश मुर्मू शामिल हैं।झारखंड के श्री सम्मेद शिखर जी तीर्थ स्थल को पर्यटन स्थल बनाने का विरोध, मुंबई, अहमदाबाद, दिल्ली समेत देश भर में जैन समाज प्रदर्शन करता रहा है।इसी बीच झारखण्ड बचाओ मोर्चा द्वारा अपने सदस्यों के बीच प्रसारित एक पत्र में कहा गया है कि झारखंड के गिरिडीह जिले के पीरटांड़ ब्लॉक में स्थित पारसनाथ पर्वत के रूप में विश्व प्रसिद्ध मतंग बुरु पर्वत को जबरन स्थापित करने का दुर्भावनापूर्ण प्रयास किया गया है। जबकि यह स्थान अनादिकाल से आदिवासियों यानी संथालों का एक पवित्र धार्मिक स्थल है, जिसका उल्लेख बिहार सरकार के 1957 के हजारीबाग जिला राजपत्र में भी है। यहां तक कि लंदन में प्रिवी काउंसिल ने जैन समुदाय के दावे के खिलाफ फैसला सुनाया था और संथालों के पक्ष में रिकॉर्ड ऑफ राइट्स प्रदान किया था। उसके बावजूद वर्तमान राज्य सरकार और केंद्र सरकार आदिवासियों और झारखंड के साथ इस तरह का घोर अन्याय क्यों कर रही है?2019 से पहले जब सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित नहीं किया गया था, तब स्थिति पूरी तरह सामान्य थी। जैन समाज और आदिवासी समुदाय दोनों अपनी-अपनी आस्था से इस पहाड़ पर पूजा करते थे। यहां कोई भी बिना रोक-टोक के आ-जा सकता था।जैन समाज का दावा है कि साल में एक दिन वे खुद आदिवासी समुदाय के लोगों की पूजा के लिए यहां स्वागत करते थे। इस पूजा के दौरान यहां वे किसी प्रकार की बली नहीं देते थे। आदिवासी समुदाय भी खुलकर इस बात को नहीं मानते हैं कि वे यहां किसी प्रकार की बलि देते थे। हालांकि आदिवासी नेताओं का मानना है कि बलि उनकी प्रथा है। वे वर्षों से इसका पालन करते आ रहे हैं।इस मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि झारखंड के पारसनाथ पहाड़ पर स्थित जैन तीर्थ सम्मेद शिखर विवाद भाजपा का हिडेन एजेंडा है,वे जैन और आदिवासी समाज के लोगों को लड़ाने की साजिश रच रहे हैं। सोरेन ने संताली भाषा में कहा कि मरांगबुरु हमारा था,हमारा है और हमारा रहेगा। आप लोग निश्चिंत रहें।यह पूरा क्षेत्र 6490 हेक्टेयर का बताया जाता है, जिसमें 4933 हेक्टेयर की सेंक्चुरी है। जिसे सरकार पर्यटन के हिसाब से विकसित करना चाह रही है।जे एम एम विधायक लोबिन हेम्ब्रम का कहना है कि सदियों से संथाल इस पहाड़ी पर पूजा करते आए हैं।1911में बिहार डिस्ट्रिक गजेटियार में पारसनाथ का ज़िक्र मरांगबुरु के रूप में है। वैसाख की पूर्णिमा को वहां संथालियों का मेला लगता है।वहां के 10 किलोमीटर एरिये में बलि नहीं करने की बात हो रही है, जंगल से लकड़ी नहीं काटने दी जाती। ज़मीन हमारी है, पहाड़ हमारे हैं सरकार पूरे स्थल को मरांगबुरु स्थल घोषित करे। हम आवाज़ उठा रहे हैं हेमंत मुझे पार्टी से निकाल सकते हैं माटी से नहीं। जे एम एम के महासचिव और गिरडीह के विधायक सुदिव्य कुमार सोनू का भी कहना है कि यह पहाड़ी आदिवासियों की है।जैन समुदाय चिंतित है कि क्षेत्र को पर्यटन स्थल में परिवर्तित करने से शराब और मांसाहारी भोजन की खपत होगी, जो उनके धर्म में प्रतिबंधित है। झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ियों की चोटी पर स्थित सम्मेद शिखर जी दिगंबर और श्वेतांबर दोनों संप्रदायों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल है। जैनियों के राष्ट्रव्यापी विरोध के बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र अधिसूचना के प्रावधानों पर रोक लगा दी और राज्य से क्षेत्र में सभी पर्यटन और पर्यावरण-पर्यटन गतिविधियों को प्रतिबंधित करने के लिए कहा। यहां तक कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी भूपेंद्र यादव से ऐसा ही करने को कहा था।राज्य के गठन के बाद से पिछले 22 वर्षों में कई अधिकारों की मांग को लेकर आदिवासी समुदाय द्वारा एक ‘बड़ा आंदोलन’ किए जाने की योजना है ।हेमंत सोरेन सरकार आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए मुखर रही है।इसलिए सरकार नियम बनाने के लिए काम कर रही है और जब भी यह तैयार होगा इसे लागू किया जाएगा। साथ ही हाल के दिनों में कई नौकरियां सृजित की गई हैं, लेकिन और अधिक किए जाने की जरूरत है। पिछले इतने वर्षों में समुदाय के साथ किए गए अन्याय को केवल तीन वर्षों में ठीक नहीं किया जा सकता है।जैन धर्म ग्रंथो में इस पवित्र स्थल की गरिमा का बारबार उल्लेख है।जैन मान्यता के ग्रंथ कहते हैं कि 772 ईसा पूर्व में पार्श्वनाथ भगवान अन्तिम तीर्थंकर थे जिन्होंने इस पर्वत पर निर्वाण पाया।नौवीं शताब्दी में सुरीश्वर जी महाराज सम्मेद शिखर जी गए और बीस तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि को चिह्नित कर स्तूप बनवाए।12 वीं शताब्दी में संकलित भगवान पार्श्वनाथ की जीवनी पार्श्वनाथचरित में भी श्री सम्मेद शिखर जी का उल्लेख है।13 वीं शताब्दी के कल्प सूत्र और कालकाचार्यकथा की ताड़ के पत्तों की पाण्डुलिपि में भगवान पार्श्वनाथ के निर्वाण का उल्लेख है।इतिहास कहता है कि 1592 ईस्वी में बादशाह अकबर ने श्री सम्मेद शिखर जी क्षेत्र को जैनियों को सौंपने का फरमान जारी किया था जिससे इस पवित्र स्थान पर कोई शिकार न कर सके।1698 ईस्वी में जहांगीर के दूसरे बेटे आलमगीर ने श्री सम्मेद शिखर जी को कर मुक्त घोषित किया था।अंग्रेजों के ज़माने के दस्तावेज भी इस तीर्थ की गरिमा का उल्लेख करते हैं,