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Wednesday, November 27, 2024

सम्पादक की कलम से…

21 JANUARY 2023

सम्पादकीय

भारत में अमेरिकी राजदूत

आजकल यह चर्चा काफ़ी है कि भारत में अमेरिका का कोई स्थायी राजदूत नहीं है।भारत सरहद पर चीन की आक्रामकता का सामना कर रहा है। अमेरिका की टेक इंडस्ट्री में भी भारतीय प्रतिभाओं का अहम योगदान है।इतना कुछ होने के बावजूद यह सवाल उठ रहा है कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन भारत की उपेक्षा कर रहे हैं? बाइडन का आधा कार्यकाल ख़त्म हो चुका है और भारत में अमेरिका का कोई राजदूत नहीं है।अमेरिका कई बार कह चुका है कि भारत उसका रणनीतिक सहयोगी है और उसकी विदेशी नीति में भारत काफ़ी अहमियत रखता है।एशिया-पैसिफ़िक में क्षेत्र में चीन और अमेरिका दबदबे के लिए प्रतिद्वंद्विता में लगे हैं इस लिहाज़ से अमेरिका के लिए भारत की अहियत साफ़ है।एशिया-पैसिफिक के शक्ति संतुलन में भारत का अहम रोल है।कई मुद्दों पर अमेरिका और चीन में तनातनी है। एक मुद्दा ताइवान है।अमेरिका साफ़ कर चुका है कि अगर चीन भविष्य में ताइवान पर सैन्य शक्ति का इस्तेमाल कर, उसे अपने साथ मिलाने का प्रयास करेगा तो वो ताइवान के साथ खड़ा रहेगा।यूक्रेन पर रूसी हमले में भी चीन के रुख़ को लेकर अमेरिका नाराज़ है। अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ कड़े प्रतिबंध लगाए हैं और लेकिन रूस को चीन से मदद मिल रही है। ऐसे में अमेरिकी प्रतिबंध बहुत असरदार साबित नहीं हो रहे हैं।जनवरी 2021 में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर ने इस्तीफ़ा दिया था।उसके बाद से बाइडन प्रशासन ने छह लोगों को अंतरिम प्रभार सौंपा लेकिन किसी को स्थायी राजदूत नियुक्त नहीं किया। छठे प्रभार की घोषणा पिछले साल अक्टूबर में हुई थी।700 दिन से ज़्यादा हो गए हैं और अमेरिका का नयी दिल्ली दूतावास बिना राजदूत के चल रहा है।दोनों देशों के राजनयिक इतिहास में यह सबसे लंबा समय है। शीत युद्ध के दौरान भी ऐसा नहीं था। इसमें पूरी तरह से राष्ट्रपति बाइडन की भी ग़लती नहीं है।बाइडन ने लॉस ऐंजिलिस के मेयर एरिक गार्सेटी को जुलाई 2021 में भारत में राजदूत के लिए नामांकित किया गया था।लेकिन गार्सेटी को मंज़ूरी देने के लिए होने वाली वोटिंग लटक गई थी। एक रिपब्लिकन सीनेटर ने आरोप लगाया था कि गार्सेटी की भूमिका उनके सहयोगी के यौन दुर्व्यवहार में ठीक नहीं थी। उसके बाद से गार्सेटी की नियुक्ति अटकी हुई है।इसके अलावा और भी कई कारण हैं, जिनकी वजह के गार्सेटी की मंज़ूरी अटकी हुई है। खंडित जनादेश वाली सीनेट में कई काम लंबित हैं।किसी भी प्रस्ताव पर सहमति नहीं बन रही है।यह बात भी कही जा रही है कि अमेरिका का अभी पूरा फोकस यूक्रेन में रूस पर हमले को लेकर है।गार्सेटी को बाइडन प्रशासन सीनेट से मंज़ूरी दिला सकता है। दिसंबर में व्हाइट हाउस की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कुछ ऐसी ही बात कही गई थी। इस साल जनवरी में गार्सेटी को बाइडन प्रशासन ने फिर भारत में राजदूत के लिए नामांकित किया है।जिन समस्याओं का समाधान दूतावास के स्तर पर हो सकता था, उन्हें विदेश मंत्रियों को प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उठाना पड़ा। मिसाल के तौर पर पिछले साल 27 सितंबर को अमेरिकी विदेश मंत्री के समक्ष जयशंकर ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में वीज़ा का मुद्दा उठाया था।कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है कि यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि अमेरिका ने पिछले दो सालों से भारत में अपना कोई राजदूत नहीं रखा है।बाइडन भारत को कई बार अहम साझेदार कह चुके हैं, तब भी यह हाल है।दोनों देशों के संबंधों में अमेरिकी राजदूत की अहम भूमिका रही है।1962 में चीन ने भारत पर हमला किया तो जॉन केनेथ गैल्ब्राइथ नयी दिल्ली में अमेरिकी राजदूत थे। केनेथ तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ़ केनेडी के क़रीबी थे।इसके साथ ही भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू से भी उनके अच्छे संबंध थे।युद्ध के दौरान अमेरिकी हथियारों की खेप भारत भेजवाने में केनेथ की अहम भूमिका मानी जाती है।इससे पहले नेहरू अमेरिका से मदद मांगने में संकोच कर रहे थे। केनेथ ने तब नेहरू और केनेडी के बीच कड़ी का काम किया था और दोनों देशों को क़रीब लाने में कामयाब रहे थे।नेहरू और केनेडी के बीच अविश्वास को केनेथ ने ख़त्म कर दिया था,1962 में अमेरिका ने भारत का समर्थन कर संबंधों में नई गर्मजोशी ला दी थी। उस वक़्त केनेथ भारत में काफ़ी लोकप्रिय हो गए थे। राजदूत के काम को हल्के में नहीं लिया जा सकता।2021 में भारत में अमेरिकी निवेश 45 अरब डॉलर था। वैश्विक सप्लाई चेन में चीन की बढ़ती भूमिका को लेकर चिंता बढ़ रही है।अमेरिकी कंपनी कोशिश में हैं कि चीन से मैन्युफैक्चरिंग हब कहीं और शिफ़्ट किया जाए।जेपी मॉर्गन 2025 तक भारत से काम शुरू कर सकती है, एपल 25 फ़ीसदी आईफ़ोन भारत में बना सकती है।ऐसे अहम समय में अमेरिकी दूतावास को चाहिए कि वह अपनी कंपनियों को मदद करे।ओबामा के शासन में भारत में अमेरिकी राजदूत रिचर्ड ने कहा था कि पेरिस जलवायु समझौते में भारत की अहम भूमिका थी।रिचर्ड ने भारत को अमेरिका के साथ लाने में अहम योगदान दिया था।दोनों देशों के नेताओं के बीच अहम बैठकें करवाई थीं।दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में राजदूत एक कड़ी का काम करता है।रूस को लेकर भारत और अमेरिका के बीच एक बार फिर कई असहमतियां उभरकर सामने आई हैं और ऐसी स्थिति में राजदूत का अहम रोल होता है,यह अविश्वास अहम वैश्वित हालात में दोनों देशों के संबंधों के लिए ठीक नहीं माना जा रहा है। विदेश मन्त्री जयशंकर कई मौक़ों पर अमेरिका सहित पूरे पश्चिम को खुलकर घेर रहे हैं।कहा जा रहा है कि दिल्ली में अमेरिका का कोई राजदूत होता तो जयशंकर के स्तर तक चीज़ें न जातीं।भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत केनेथ जस्टर ने पिछले साल अक्टूबर में कहा था,परंपरा के मुताबिक़ मैंने गार्सेटी से बात की थी।वह बहुत ही मेधावी, ज्ञानी और ऊर्जावान हैं। वह भारत में एक बेहतरीन राजदूत साबित होंगे. मेरा मानना है कि दोनों देशों में अटूट द्विपक्षीय संबंध उच्च स्तर पर बिना एक मज़बूत राजदूत के संभव नहीं है।

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