13 JANUARY 2023
सम्पादकीय
न्यूज़ चैनलों को नसीहत
सरकार ने निरंकुश न्यूज़ चैनलों को नसीहत की है। न्यूज़ चैनलों पर सवाल उठते रहते हैं,सरकार की तरफ़ से नसीहत भी पहली बार नहीं है। अब कहा जाने लगा है कि न्यूज़ चैनलों पर समाचार के अलावा सभी कुछ परोसा जा रहा है।अब एक चैनल का एंकर दूसरे चैनल के एंकर का जमकर मज़ाक़ उड़ाता है, यह सब देखकर लोग यही कहते हैं कि चैनलों के एंकर निरंकुश हो गए हैं, ये एंकर पत्रकारिता को कहीं पीछे छोड़ कर टीआरपिकता की दौड़ में दौड़ते-दौड़ते भटकाव की घाटी में आ गए हैं। न्यूज़ भी ऐसे पढ़ते हैं जैसे इनके स्टूडियो में बम फटने वाला हो। कोई-कोई एंकर तो इतना बौखलाया रहता है कि वह एंकर लगता ही नहीं। जिन्हें पत्रकार होना चाहिए था वे एंकर बन गए और अब एंकर भी नहीं रहे विचित्र कमेडियन बन कर रह गए हैं।केंद्र के सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सभी टेलीविजन चैनलों को महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के खिलाफ हिंसा सहित दुर्घटनाओं, मौतों और हिंसा की ऐसी घटनाओं की रिपोर्टिंग के खिलाफ एक एडवाइजरी जारी की है।मंत्रालय द्वारा टेलीविजन चैनलों द्वारा कई मामलों में कमी देखने के बाद यह एडवाइजरी जारी की गई है।मंत्रालय ने कहा है कि टेलीविजन चैनलों ने लोगों के शवों और चारों ओर खून के छींटे, घायल व्यक्तियों के चित्र-वीडियो दिखाए हैं। इसके साथ ही महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों सहित लोगों को बेरहमी से पीटते हुए वीडियो भी दिखाए, जिसमें पीड़ित रो रहे हैं, बच्चे को पीटा जा रहा है। मंत्रालय ने कहा कि ऐसे वीडियो और छवियों पर सावधानी बरतने की जगह इनको लंबे शॉट्स के रूप में दिखाया गया और भयानक बना दिया गया। घटनाओं की रिपोर्टिंग का तरीका दर्शकों के लिए बेहद परेशान करने वाला है।एडवाइजरी में विभिन्न श्रोताओं पर इस तरह की रिपोर्टिंग के प्रभाव पर प्रकाश डाला है। इसमें कहा गया है कि ऐसी खबरों का बच्चों पर विपरीत मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ सकता है। यह निजता के हनन का एक महत्वपूर्ण मुद्दा भी है, जो संभावित रूप से निंदनीय और हानिकारक हो सकता है। साथ ही कहा गया कि टेलीविज़न एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जिसको घर, परिवार में लोग एक साथ बैठकर देखते हैं।मंत्रालय ने यह भी देखा कि ज्यादातर मामलों में वीडियो सोशल मीडिया से लिए जा रहे हैं और प्रोग्राम कोड के अनुपालन और निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए संपादकीय और संशोधनों के बिना प्रसारित किए जा रहे हैं। मंत्रालय ने हाल में प्रसारित सामग्री के उदाहरणों की सूची भी जारी की है।जिसमें दुर्घटना में घायल हुए क्रिकेटर की दर्दनाक तस्वीरें और वीडियो बिना धुंधला किए दिखाया गया।एक शव को घसीटते हुए एक आदमी का परेशान करने वाला फुटेज दिखाया गया, जिसके चारों ओर खून के छींटे पड़े हुए हैं।पटना के एक कोचिंग क्लासरूप में एक शिक्षक को 5 साल के बच्चे को बेरहमी से पिटाई करते तब तक दिखाया गया, जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गया। क्लिप को म्यूट किए बिना चलाया गया था, जिसमें दया की भीख मांगते बच्चे की दर्दनाक चीखें सुनी जा सकती हैं। इसे 09 मिनट से अधिक समय तक दिखाया गया था।बिना धुंधला किए एक पंजाबी गायक के शव की दर्दनाक तस्वीरों को दिखाया गया।इस तरह के प्रसारण पर चिंता जताते हुए और इसमें शामिल व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए और बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों सहित टेलीविजन चैनलों के दर्शकों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, मंत्रालय ने सभी निजी टेलीविजन चैनलों को दृढ़ता से सलाह दी है कि वे अपने सिस्टम और रिपोर्टिंग घटनाओं की प्रथाओं को ध्यान में रखें।विधायिका,कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता ये लोकतंन्त्र के चार स्तम्भ हैं। चारों महत्वपूर्ण हैं।चारों के कामकाज पर सवाल नहीं उठने चाहिएं मगर अफ़सोस कि सवाल उठते हैं।पत्रकारिता बाक़ी तीनों स्तम्भ पर नज़र रखती है मगर अब यह देखा जा रहा है कि चैनलों की पत्रकारिता की नज़र वैसी नहीं रह गयी है,अब चैनलों की पत्रकारिता ही पर लोग नज़र रख रहे हैं।पत्रकार वर्ग सम्पूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व करता है, परन्तु चैनलों की बाढ़ ने इस गरिमा को कम कर दिया है।आज बहुत कम चैनलीय पत्रकार ऐसे होंगे जो वास्तव में जन-कल्याण को ध्यान में रखते होंगे।आज कोई भी बड़ा समाचार चैनल सनसनीखेज खबरें ब्रेकिंग न्यूज के रूप में 24 घंटे दिये जा रहा है और दर्शक वर्ग भी बिना पलक झपकाए, बिना किसी शिकायत के परोसी न्यूज को देखे जा रहा है। खबरें भी ऐसी जिनमें न्यूज फैक्टर न के बराबर होता है।अभी कुछ समय पहले पहले एक फ़िल्म स्टार ने अपने बेटे की शादी की थी तो सभी चैनल वालों ने एक सप्ताह तक अपने दर्शकों के सामने इस समाचार की सब्जी परोसी, जिसे लोगों ने भी चटकारे ले ले कर खाया।यदि इसे समाचारों में शामिल कर भी लिया जाए तो इसको इतना तूल देने की क्या जरुरत थी। ऊपर से सब चैनल इस बात पर जोर दे रहे थे कि सिर्फ आप के लिए हम शादी में न बुलाए जाने के बावजूद ये समाचार कवर कर रहे हैं। एक मर्डर केस में चैनलीय एंकरों ने इस केस को सनसनी खेज बनाने के लिए,नया मोड़ देने के लिए मृतक के करीबी ही को हत्यारा साबित कर दिया।अंत में हत्यारा कोई और ही निकला।एक माइक मैन ने मना करने के बाबजूद युद्ध के समय युद्धक्षेत्र के बीत्र खड़े होकर रिर्पोटिंग की थी। जो बहादुरी का कम मूर्खता का अधिक प्रतीक था। चैनलों को अपनी शक्तियों के दुरुपयोग करने की स्वतंत्रता नहीं मिलनी चाहिए। और यदि कोई चैनल व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके खिलाफ भी मामला उठाया जाना चाहिए।महज टीआरपी यानि टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट या टेलीविजन रेटिंग पर प्रोग्राम की खातिर इलैक्ट्रानिक मीडिया उलजुलूल खबरों को दिन व रात चलाए रखता है।अब उनकी मजबूरी ये है कि उनको चैनल चलाने के लिए स्पांसर चाहिए। और चैनल को स्पांसर व एडवरटीजमैंट तभी मिलेगी जब चैनल लोकप्रिय होगा। लेकिन चैनल को लोकप्रिय बनाने के लिए घटिया रास्ता अपनाने से बेहतर है कि अच्छा व सत्यतापूर्ण बहुत ही समाचार ही दिखाया जाए। अभी भी कुछ ऐसे पत्रकार बन्धु, चैनल व अखबारें है जो अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा के साथ निबाह रहे हैं।