19.4 C
Muzaffarnagar
Wednesday, November 27, 2024

संपादक की कलम से…

10 JANUARY 2023

उत्तराखंड

जोशीमठ,आपदा संभावित क्षेत्र

जोशीमठ को आपदा संभावित क्षेत्र घोषित कर दिया गया है। इसके साथ ही जोशीमठ और आसपास के इलाकों में निर्माण गतिविधियों पर रोक लगा दी गई है।प्रधानमन्त्री मोदी ने इस मुद्दे पर विशेषज्ञों के साथ एक उच्चस्तरीय बैठक की,जिसके बाद केंद्रीय एजेंसियां सक्रिय होती दिख रही हैं।स्थानीय प्रशासन भी लोगों को राहत सामग्री बांटने में जुटा हुआ है और लोगों को सुरक्षित ठिकाने पर भी पहुंचाया जा रहा है।जल शक्ति मंत्रालय की एक टीम सहित, केंद्र सरकार की दो टीमें वहां पहुंची। जोशीमठ और आसपास के इलाकों में निर्माण गतिविधियों पर रोक लगा दी गई है। प्रभावित लोगों को सूखे राशन के किट बांटे जा रहे हैं।जोशीमठ की ज़मीन के अंदर जो कुछ चल रहा है,उसका असर ज़मीन के ऊपर दिख रहा है।उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के कार्यकारी निदेशक और भूगर्भशास्त्री का कहना है कि दो से तीन जनवरी की दरमियानी रात को भूगर्भीय जल स्रोत फटने की वजह से जोशीमठ के घरों में दरारें आना शुरू हो गयी।इस भूगर्भीय जल स्रोत से हर मिनट चार से पांच सौ लीटर पानी निकल रहा है।इस बर्फ़ीले पानी की वजह से भूगर्भीय चट्टान का क्षरण हो रहा है।अब तक ये नहीं पता है कि इस भूगर्भीय जल स्रोत का आकार कितना बड़ा है और इसमें कितना बर्फ़ीला पानी मौजूद है और ये भी स्पष्ट नहीं है कि ये अचानक क्यों फट गया है।भूगर्भशास्त्रियों ने अपनी शुरुआती जांच में ये पाया है कि जोशीमठ की ज़मीन धसकने में जो एकाएक तेज़ी आई है, उसके लिए जनवरी के पहले हफ़्ते में भूगर्भीय जल स्रोत का फटना है।वैज्ञानिकों ने दशकों पहले इस तरह के संकट की चेतावनी दी थी।साल 2010 में प्रकाशित एक साइंस जर्नल में चेतावनी दी थी कि इस क्षेत्र में मानवीय गतिविधियों की वजह से तनाव बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं।जोशीमठ भारत के सबसे ज़्यादा भूकंप प्रभावित इलाके ज़ोन-5 में आता है। साल 2011में करीब 4,000 घरों में 17,000 लोग रहते थे लेकिन वक़्त के साथ इस शहर पर भी इंसानी बोझ बढ़ा है।बढ़ती जनसंख्या और भवनों के बढ़ते निर्माण के दौरान 70 के दशक में भी लोगों ने भूस्सखलन आदि की शिकायत की थी जिसके बाद मिश्रा कमेटी बनी।कमेटी रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ प्राचीन भूस्सखलन क्षेत्र में स्थिर है और ये शहर पहाड़ से टूटे बड़े टुकड़ों और मिट्टी के अस्थिर ढेर पर बसा है। मानना ये भी है कि पिछले साल फ़रवरी को टूटे ग्लेशियर के मलबे ने इस उस ढेर को टक्कर नारी जिस पर ये शहर बसा है जिससे भूतल की अस्थिरता और बढ़ गई, हालांकि इस दावे की भी वैज्ञानिक पुष्टि होनी बाक़ी है।जानकारों के मुताबिक निर्माण कार्य और जनसंख्या के बढ़ते बोझ, बरसात, ग्लेशियर या सीवेज के पानी का ज़मीन में जाकर मिट्टी को हटाना जिससे चट्टानों का हिलना, ड्रेनेज सिस्टम नहीं होने, इत्यादि से जोशीमठ का धंसाव बढ़ा है।1976 की रिपोर्ट कहती हैं,कई एजेंसियों ने जोशीमठ इलाके में प्राकृतिक जंगल को बेरहमी से तबाह किया है।पथरीली ढलान खाली और बिना पेड़ के हैं।जोशीमठ क़रीब 6,000 मीटर की उंचाई पर है लेकिन पेड़ों को 8,000 फ़ीट पीछे तक ढकेल दिया गया है।पेड़ों की कमी के कारण कटाव और भूस्सखलन हुआ है। नग्न चोटियां मौसम के हमलों के लिए खुली हैं।बड़े पत्थरों को रोकने के लिए कुछ नहीं है।इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भवन निर्माण के भारी काम पर रोक लगे, रोड रिपेयर और दूसरे निर्माण काम के लिए बड़े पत्थरों को खोदकर या ब्लास्ट करके न हटाया जाए, पेड़ और घास लगाने के लिए बड़े अभियान की शुरुआत हो, पक्के ड्रेन सिस्टम का निर्माण हो।जानकार बताते हैं कि धंसाव की यह समस्या उत्तराखंड और हिमालय से सटे सभी राज्यों की है।सिक्किम में एक कॉन्क्लेव है सारे हिमालयन स्टेट्स का।पूरे गंगटोक में गंभीर भूस्सखलन और धंसाव का मसअला है। पूरा शहर धंस रहा है।ये सिर्फ़ उत्तराखंड ही नहीं, पूरे हिमालयन स्टेट्स की समस्या हो गई है।सिर्फ़ जोशीमठ ही आपदा संभावित क्षेत्र नहीं है। गोपेश्वर नगर की भी यही हालत है, उत्तरकाशी, अल्मोड़ा, बागेश्वर उसकी भी यही हालत है।उत्तराखंड का जो पहाड़ी क्षेत्र है, उस सबका भौगोलिक क्षेत्र इसी तरह की है और बहुत संवेदनशील है और हिमालय तो अभी नए पहाड़ हैं,ये कमज़ोर पहाड़ हैं और ये लगातार आपदा का दंश झेल रहे हैं।बहुत सावधानी की आवश्यकता है।स्थानीय एक्टिविस्ट यह बताते हैं कि रिपोर्ट के सुझाव और चेतावनियों का किसी ने पालन नहीं किया।बल्कि उसके उलट हुआ।रिपोर्ट ने कहा कि आपको बोल्डर नहीं छेड़ना है।यहां विस्फोटों के ज़रिए तमाम बोल्डर तोड़े गए।जोशीमठ में लगातार विस्तार हो रहा है, नागरिकीकरण हो रहा है।लोग जोशीमठ आ रहे हैं, लेकिन उसके हिसाब से नगरीय सुविधाएं, पानी की निकासी की व्यवस्था नहीं है।सीवेज की व्यवस्था नहीं है, इन वजहों ने धंसाव की गति को और तीव्र कर दिया है।भू-वैज्ञानिकों और जानकारों की सितंबर 2022 की एक और रिपोर्ट में भी “नियंत्रित विकास” की बात की गई है।मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ में भारी भवन निर्माण की शुरुआत साल 1962 के बाद से हुई।1962 के बाद चीन के साथ युद्ध के बाद इलाके में तेज़ी के साथ सड़क मार्ग का विकास हुआ, सेना बसने लगी।हेलीपैड का निर्माण हुआ।उनके लिए भवनों, बैरक्स का निर्माण होने लगा।जोशीमठ हर साल 85 मिलीमीटर की रफ़्तार से धंस रहा है।इसका मतलब है कि ये कोई भूस्सखलन का असर नहीं बल्कि ये हर साल 85 मिलीमीटर की रफ़्तार से धंस रहा है, जो कि बहुत ज़्यादा है।2006 में जोशीमठ पर आई एक और रिपोर्ट में कहा गया था कि जोशीमठ पर बढ़ते मानवीय दवाब को कम करने के लिए तुरंत कदम उठाए जाने की ज़रूरत है।भूवैज्ञानिक बार बार याद दिला रहे थे कि ये पहाड़ नाज़ुक हैं और वो एक स्तर तक ही बोझ बरदाश्त कर सकते हैं।चेतावनी की अनदेखी का परिणाम सामने है।जोशीमठ में पहली ज़रूरत है कि लोगों को सुरक्षित जगह ले जाया जाए लोगों को जागरुक किया जाए।लोगों को सरकार से घरों की वैकल्पिक व्यवस्था की उम्मीद है, लोगों के पास इतने संसाधन नहीं हैं कि वो अपना घर छोड़कर कहीं और जा पाएं और वो मजबूरी में दरार वाले धंसते घरों में रहने को मजबूर हैं।

Previous article10 JANUARY 2023
Next article11 JANUARY 2023

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -spot_img

Latest Articles