जोशीमठ डूबने की आशंका
8 JANUARY 2023
उत्तराखंड के चमोली ज़िले का जोशीमठ जिसे बद्रीनाथ का प्रवेश द्वार भी कहते हैं,उसके डूबने की आशंका जताई जा रही है। यहां एक साल में करीब 500 घरों, दुकानों और होटलों में दरारें आई हैं।जोशीमठ धंस रहा है।4,677 वर्ग किमी में फैले इलाके से करीब 600 परिवारों को निकालने का काम चल रहा है। करीब 5 हजार लोग दहशत में हैं। उन्हें डर है कि उनका घर कभी भी ढह सकता है।भूगर्भ वैज्ञानिकों का कहना है कि जोशीमठ अलकनंदा नदी की ओर खिसक रहा है। इसकी जद में सेना की ब्रिगेड, गढ़वाल स्काउट्स और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की बटालियन भी है।वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि तुरंत असरदार क़दम नहीं उठाए गए, तो बड़ी प्राकृतिक आपदा आ सकती है। इसमें जोशीमठ का अस्तित्व ही मिट सकता है।एनटीपीसी के हाइडल प्रोजेक्ट की 16 किमी लंबी सुरंग जोशीमठ के नीचे से गुजर रही है। यह सुरंग मलबा घुस जाने के बाद बंद है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सुरंग में गैस बनने पर इससे बना दबाव मिट्टी को अस्थिर कर रही है। इस वजह से जमीन धंस रही है।हालात बिगड़ने पर सरकार ने एनटीपीसी के हाइडल प्रोजेक्ट की सुरंग और चार धाम ऑल-वेदर रोड का काम रोकने का आदेश दिया था, लेकिन कागजों पर जहां काम बंद है, लेकिन मौके पर बड़ी मशीनें लगातार पहाड़ खोद रही हैं।जोशीमठ के मकानों में दरार आने की शुरुआत 13 साल पहले हो गई थी। हालात काबू से बाहर निकले तो एनटीपीसी के पॉवर प्रोजेक्ट और चार धाम ऑल वेदर रोड का काम रोकने के आदेश दे दिए गए।जानकारों का कहना है कि ब्लास्टिंग और शहर के नीचे सुरंग बनाने की वजह से पहाड़ धंस रहे हैं। अगर इसे तुरंत नहीं रोका गया, तो शहर मलबे में बदल सकता है।हिमालय के इको सेंसेटिव जोन में मौजूद जोशीमठ बद्रीनाथ, हेमकुंड और फूलों की घाटी तक जाने का प्रवेश द्वार माना जाता है।हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जोशीमठ महत्वपूर्ण स्थान है।यही वो स्थान है जहां पर आदिगुरु शंकराचार्य ने तपस्या कर दिव्य ज्योति प्राप्त की थी। यहां 1200 साल पुराना नृसिंह देव का मंदिर भी स्थित है,कहते हैं कि आदिगुरु शंकराचार्य ही ने नृसिंह देव की मूर्ति को स्थापित किया था।इस समय जोशीमठ की स्थिति संवेदनशील है।जोशीमठ की जियोलॉजिकल लोकेशन पर जारी रिपोर्ट्स में बताया गया है कि ये शहर अब अस्थिर है।जोशीमठ और मशहूर स्की रिसोर्ट औली के बीच देश के सबसे लंबे 4.15 किमी के रोप-वे पर खतरा मंडरा रहा है। रोप-वे के टावरों के पास भूस्खलन शुरू हो चुका है।सिंगधार वार्ड में एक मंदिर ढह गया। इससे स्थानीय लोग काफी चिंतित हैं। अधिकारियों ने बताया कि जब यह घटना हुई तो मंदिर के अंदर कोई नहीं था, क्योंकि पिछले 15 दिनों में बड़ी दरारें आने के बाद इसे छोड़ दिया गया था।उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों में पड़ने वाले ज्यादातर गांव ग्लेशियर के मटेरियल पर बसे हैं। जहां आज बसाहट है, वहां कभी ग्लेशियर थे। इन ग्लेशियरों के ऊपर लाखों टन चट्टानें और मिट्टी जम जाती है।लाखों साल बाद ग्लेशियर की बर्फ पिघलती है और मिट्टी पहाड़ बन जाती है, इन दरारों को लेकर सरकार भी परेशान है और ठोस क़दम उठा रही है।एक बड़ा अस्थायी पुनर्वास केंद्र बनाया जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाई लेवल मीटिंग में कहा कि सुरक्षित जगह पर यह पुनर्वास केंद्र बनाया जाए। साथ ही, उन्होंने डेंजर जोन को तत्काल खाली कराने के लिए कहा।राज्य सरकार ने 2,000 प्री-फैब्रिकेटेड हाउस बनाने के भी निर्देश दिए। इसके साथ ही 38 सबसे अधिक प्रभावित परिवारों को शिफ्ट भी कर दिया है। चमोली जिला प्रशासन ने हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड और नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन को भूमि धंसने के कारण उत्तराखंड के जोशीमठ से पलायन करने वाले प्रभावित परिवारों को आश्रय देने के लिए तैयार रहने को कहा।राज्य सरकार ने जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, वाडिया इंस्टिट्यूट और आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों की टीम बनाई है।यह कारण खोजेगी। प्रदेश भाजपा संगठन ने भी 14 सदस्यीय कमेटी बनाई है।1976 में गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने कहा था कि जोशीमठ का इलाका प्राचीन भूस्सखलन क्षेत्र में आता है। यह शहर पहाड़ से टूटकर आए बड़े टुकड़ों और मिट्टी के ढेर पर बसा है, जो बेहद अस्थिर है।कमेटी ने इस इलाके में ढलानों पर खुदाई या ब्लास्टिंग कर कोई बड़ा पत्थर न हटाने की सिफारिश की थी। साथ ही कहा था कि जोशीमठ के पांच किलोमीटर के दायरे में किसी तरह का कंस्ट्रक्शन मटेरियल डंप न किया जाए।मिश्रा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि डेवलपमेंट ने जोशीमठ इलाके में मौजूद रहे जंगल को तबाह कर दिया है। पहाड़ों की पथरीली ढलानें खाली और बिना पेड़ों के रह गई हैं।जोशीमठ करीब 6 हजार फीट की ऊंचाई पर बसा है, लेकिन बसाहट बढ़ने से फॉरेस्ट कवर 8 हजार फीट तक पीछे खिसक गया है। पेड़ों की कमी से कटाव और लैंड स्लाइडिंग बढ़ी है। इस दौरान खिसकने वाले बड़े पत्थरों को रोकने के लिए जंगल बचे ही नहीं हैं।अंधाधुंध ब्लास्ट्स और बेतरतीब कंस्ट्रक्शन इसका कारण है।वैज्ञानिकों का कहना है कि जोशीमठ शहर के नीचे एक तरफ धौली गंगा और दूसरी तरफ अलकनंदा नदी है। दोनों नदियों की वजह से पहाड़ के कटाव ने भी पहाड़ को कमजोर किया है।जोशीमठ भू-धंसाव को लेकर ज्योतिष्पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल की है। उन्होंने जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ज्योतिर्मठ भी इसकी चपेट में आ रहा है। उन्होंने प्रदेश सरकार से भू-धंसाव से प्रभावित परिवारों को त्वरित राहत पहुंचाने और उनके पुनर्वास की समुचित व्यवस्था करने की मांग की है।स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि पिछले एक वर्ष से जमीन धंसने के संकेत मिल रहे थे। लेकिन समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया। ऐतिहासिक एवं पौराणिक सांस्कृतिक नगर जोशीमठ के आगे अस्तित्व बचाने का प्रश्न आ गया है।