देवबंद, 02 अप्रैल (वार्ता)। कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते देशव्यापी लॉकडाउन का पालन करने और सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंस) बनाये रखने की हिदायत देते हुए देवबंदी विचारधारा के केंद्र दारूल उलूम देवबंद ने गुरूवार को फतवा जारी किया कि मुस्लिम समुदाय के लोग मस्जिदों के बजाय घर की चाहरदिवारी के भीतर नमाज अदा करें। दारूल उलूम के फतवा विभाग के सभी पांचों मुफ्तियों हबीबुर्रहमान खैराबादी, महमूद हसन बुलंदशहरी, जैनुल इस्लाम, वकार अली और नोमान सीतापुरी ने दारूल उलूम के चांसलर मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी के सवाल पर सर्वस मति से यह ऐतिहासिक फतवा जारी किया है। इस्लाम और इतिहास के जानकार एवं दारूल उलूम के तंजीम और तरक्की विभाग के प्रभारी अशरफ उस्मानी ने बताया कि संस्था के मोहतमिम (रेक्टर) मु ती अबुल कासिम नोमानी ने मौजूदा हालात को देखते हुए अपनी ही संस्था के एक फतवा विभाग से यह सवाल पूछा था कि जब मुल्क में महामारी फैली हो और कानूनी तौर पर सोशल डिस्टेंङ्क्षसग जरूरी हो, तो ऐसी सूरत में जुमा की नमाज पढऩे का इस्लामी आदेश क्या है। इसके जवाब में पांचों मुफ्तियों ने सर्वस मति से यह फतवा जारी किया है कि कानून के पालन के लिए मस्जिदों के बजाए जुमे की नमाज के बजाए घरो पर जौहर की नमाज अदा की जाए। उस्मानी ने स्पष्ट किया कि मुसलमानों पर पांच नमाजे फर्ज है, जिसमें एक दिन जुमा की नमाज इस तरह फर्ज है कि वह केवल जमात के साथ मस्जिद में ही पढ़ी जानी अनिवार्य है। जुमा की जगह गैर जरूरी तौर पर जौहर की नमाज नहीं पढ़ी जा सकती। इसीलिए मुसलमानों के लिए इस फतवे की बड़ी अहमियत है कि जुमा जैसा फर्ज छोड़कर दारूल उलूम देवबंद ने घरों में नमाज पढऩे को जायज करार दिया है। अशरफ उस्मानी ने यह भी कहा कि दारूल उलूम देवबंद की स्थापना के 150 सालों के दौरान ऐसा मौका देश में कभी नहीं आया है, जब लोगों को सोशल डिस्टेंस के साथ रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। दारूल उलूम की परंपरा रही है कि विपदा के समय यह संस्था देश कानून और समाज के साथ खड़ी रही है। उस्मानी ने कहा कि पिछले जुमे को भी दारूल उलूम के मोहतमिम यह अपील जारी कर चुके थे, लेेकिन वो फतवा नहीं था। अब यह अंतिम फैसले के तहत दारूल इफ्ता की पांच सदस्यीय पीठ का अतिम निर्णय के तौर पर फतवा जारी हो चुका है।