1 February2023
सम्पादकीय
राहुल की यात्रा का समापन
सात सितंबर को कन्याकुमारी से आरम्भ हुई राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 30 जनवरी को 136 दिन पश्चात 14 राज्यों से होते हुए श्रीनगर में समाप्त हो गई।कांग्रेस पार्टी का मानना है कि राहुल गांधी की इस यात्रा का घोषित उद्देश्य,भारत को एकजुट करना और साथ मिलकर देश को मज़बूत करना है।भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने बार-बार कहा कि वो देश में नफ़रत के ख़िलाफ़ मोहब्बत की दुकान खोलना चाहते हैं।”भारत तो एक जुट है तुम कांग्रेस को जोड़ो कांग्रेस बिखर रही है” यह कहकर राहुल गांधी पर कटाक्ष भी किया गया। मोहब्बत की दुकान का भी मज़ाक़ उड़ाया गया।यात्रा के मध्य जगह-जगह भाषण देते हुए और मीडिया से बात करते हुए राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और बेरोज़गारी, महंगाई, भारत के सीमा क्षेत्र में चीन के दख़ल का मुद्दा उठाया।राहुल गांधी ने क़रीब चार हज़ार किलोमीटर की यात्रा की है।बहुत से लोग ये कह रहे हैं कि उन्होंने टी-शर्ट पहनकर ये यात्रा की है। टी-शर्ट पर चर्चा करना बहुत महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन टी-शर्ट भी न्यूज़ चैनलों की सामग्री बनी रही यानी इसे भी मज़ाक़ बनाया गया।कांग्रेसियों का मानना है कि राहुल गांधी ने एक बहुत बड़ा काम किया है।आज़ाद भारत में चंद्रशेखर की पदयात्रा के बाद ये कोई पहली पदयात्रा हुई है।कांग्रेसियों का मानना है कि राहुल गांधी ने इस यात्रा के ज़रिए उन सभी सवालों को ख़ारिज कर दिया है जो उन पर उठते रहे थे,पहले कहा जाता था कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद नहीं छोड़ेंगे, उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ा, फिर कहा गया कि वो ख़ुद अध्यक्ष बन जाएंगे, लेकिन वो नहीं बने, इसके बाद कहा गया कि अध्यक्ष के चुनाव को टाल दिया जाएगा, लेकिन वो भी नहीं टाला गया।ऐसा कुछ नहीं हुआ और राहुल गांधी ने जो काम करना तय किया था, वो उसमें लगे रहे और उसे पूरा किया। भारत जोड़ो यात्रा के ज़रिए राहुल गांधी ने एक मज़बूत और गंभीर नेता की छवि बनाई है।बीजेपी और सोशल मीडिया ट्रोल ने राहुल गांधी की अलग छवि बनाई थी।पहले राहुल गांधी का मज़ाक बनाते हुए मीम सोशल मीडिया पर शेयर किए जाते थे।अब ये मीम कम हो गए हैं और राहुल गांधी के लिए सकारात्मक कंटेंट सोशल मीडिया पर बढ़ गया है। कांग्रेसी इन बातों को सोशल मीडिया पर भी शेयर कर रहे हैं यह अलग बात है कि जो कांग्रेसी नहीं हैं वे कांग्रेस के इन ख़्यालो से इत्तफाक नहीं रखते उनका मानना है कि राहुल की गंभीरता में कोई अन्तर नहीं आया है वो जैसे यात्रा से पहले थे वैसे ही यात्रा के बाद हैं बस उनका 136 दिन का टाइम पास हो गया।कांग्रेस सोचती है कि अफ़्रीका से लौटने के बाद जब गांधी भारत आए थे तब उन्होंने भी भारत में यात्राएं कीं और देश को समझा।भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी को देश को समझने का मौका दिया है।राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी के मज़बूत नेतृत्व के सामने एक ताक़तवर विकल्प के रूप में खड़े होने की कोशिश भी इस यात्रा के ज़रिए की है।यदि राहुल गांधी को बराबर का नेता न भी कहें तब भी अब वो कतार में तो आ ही गए हैं।अब लोग राहुल गांधी को गंभीरता से ले रहे हैं। दूसरी तरफ़ राहुल के बारे में बात करने वालों का मानना है कि इस यात्रा से वही ख़ुश हैं जो राहुल को महान नेता मानते हैं वही लोग उन्हें गंभीरता से भी ले रहे हैं।राहुल गांधी जिस तरह लगातार प्रधानमन्त्री को घेरते रहे उससे उन्हें फ़ायदा हुआ है।सबसे पहले तो वो कांग्रेस के निर्विवादित नेता बन गए हैं कांग्रेस में विद्रोहियों का जो कथित जी-20 समूह था वो भी शांत हो गया है और सभी ने राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया है।ये अलग बात है कि कई नेताओं ने इस यात्रा के बीच कांग्रेस छोड़ दी।राहुल को इस यात्रा का यह लाभ ज़रूर हुआ है कि अब उनकी पार्टी में उनका विरोध कम हुआ है देखना यह है कि यह चमक कब तक रहती है।कांग्रेस तो इतना ख़ुश हो रही है कि जैसे 2024 में राहुल ही विपक्ष का सर्वमान्य चेहरा बन गए हों, कांग्रेस का मानना है कि राहुल गांधी विपक्ष के नेताओं में भी आगे निकल गए हैं।अब तक चाहे ममता बनर्जी हों या अरविंद केजरीवाल, वो सभी राहुल गांधी की गंभीरता पर सवाल उठाते रहे थे।आज उन सभी को लग रहा है कि राहुल गांधी के बिना विपक्ष की एकता मुमकिन नहीं है।इसके विपरीत ज़्यादातर लोगों का मानना है कि कांग्रेस कुछ ज़्यादा ही ऊँचा ख़्वाब देख रही है।मोदी विरोधियों और राहुल से सहानुभूति रखने वालों का कहना है कि पूरे देश में मोदी और बीजेपी के ख़िलाफ़ केंद्र कौन होगा? इस यात्रा से राहुल ने इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की है।नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के बाद से नरेन्द्र मोदी के विरोधियों को भारत जोड़ो यात्रा ने पहली बार इस तरह का प्लेटफ़ॉर्म दिया है।भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में आते ही पहला काम ये किया कि कांग्रेस को विपक्षी दल का दर्जा न देते हुए उसे क्षेत्रीय दलों से भी कमतर साबित करने और राजनीति में किनारे करने की कोशिश की।राहुल गांधी के लिए सबसे अहम था कि देश की सबसे पुरानी और पहचान वाली पार्टी को पुनर्जीवित करना।विपक्ष में रह-रहकर क्षेत्रीय नेता सामने आ रहे थे।कभी ममता बनर्जी, कभी नीतीश कुमार, कभी केसीआर तो कभी अरविंद केजरीवाल।लेकिन इस यात्रा के ज़रिए राहुल ने ये साबित करने की कोशिश की है कि देश में सत्ता के विपक्ष का केंद्र वही हैं।जब कांग्रेस सत्ता में थी तब बीजेपी या संघ परिवार उसके विरोध का केंद्र होता था।अब कांग्रेस के सामने ये चुनौती थी कि वो अपने आप को विपक्ष का केंद्र बनाए।देखना होगा कि राहुल को लेकर विपक्ष के अन्य नेता क्या सोचते हैं।2012 में जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हार हुई थी तब कांग्रेस ने एंटनी समिति बनाई थी।उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक तो नहीं हुई थी, लेकिन सूत्रों के हवाले से ये पता चला था कि उस रिपोर्ट में कहा गया था कि कांग्रेस धर्म-निरपेक्ष दिखने की कोशिश में कई बार हिंदू विरोधी दिखने लगती है।इसमें राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह के कुछ बयानों का ज़िक्र था।राहुल गांधी इस यात्रा में मंदिरों में गए, जनेऊ पहना, बार-बार भगवान का ज़िक्र किया, यानी राहुल गांधी ने अपने दर्शन का खुला प्रदर्शन करने की कोशिश की।राहुल गांधी बहुत से लोगों को अपने साथ लाने में कामयाब भी हुए हैं।हालांकि वो अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, केसीआर और ममता बनर्जी को साथ नहीं ला पाए।