22 JANUARY 2023
सम्पादकीय
बोहरा और पसमांदा मुसलमान
लोकसभा चुनावों का ज़िक्र होने लगा है। सभी राजनैतिक दल कमर कस रहे हैं। केजरीवाल, अखिलेश यादव, केसीआर, ममता बनर्जी चुनावी गणित बैठाने में लगे हैं, तो प्रधानमन्त्री मोदी ने बोहरा और पसमांदा मुस्लिमों का ज़िक्र छेड़ दिया है। सभी गैर भाजपा दल मुस्लिमों की ज़्यादा बात करते हैं, मुस्लिम भी भाजपा से परहेज करते हैं।सभी गैर भाजपा दल मुस्लिमों की ज़्यादा बात करते हैं इसका कारण तो समझ में आता है लेकिन मुस्लिम, भाजपा से क्यों परहेज करते हैं यह समझ में नहीं आता।जिस वोट बैंक के दम पर गैर भाजपाई दल अपनी राजनीति चलाते हैं अब भाजपा भी उन्हीं की बात कर रही है, यह सब विपक्ष के लिए चिन्ता की बात है।भारतीय जनता पार्टी कार्यकारिणी की बैठक के समापन पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि वो ‘वोट की चिंता के बिना’ संवेदनशीलता के साथ समाज के सभी वर्गों से रिश्ता जोड़ें इसी संदर्भ में बोहरा, पसमांदा मुसलमानों और दूसरे तबक़ों का ख़ास तौर पर ज़िक्र किया।दाऊदी बोहरा मुस्लिमों के बारे में कहा जाता है कि ये शिया और सुन्नी दोनों होते हैं।दाउदी बोहरा समुदाय सदियों पुराने सिद्धांतों के एक समूह द्वारा एकजुट हैं, विश्वास के लिए एक अटूट प्रतिबद्धता स्थानीय कानून का पालन करने वाले नागरिक होने और जिस देश में वे रहते हैं, उसके लिए एक वास्तविक प्रेम विकसित करना, समाज, शिक्षा, कड़ी मेहनत और समान अधिकारों के मूल्य में विश्वास, अन्य धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ाव,पर्यावरण और उसके प्रतिवेश सभी प्राणियों की देखभाल करने की जिम्मेदारी मे अपना जीवन बिताते हैं।बोहरा शब्द, गुजराती शब्द वोहरू यानी व्यव्हार से आया है, जिसका अर्थ है “व्यापार”, उनके पारंपरिक व्यवसायों और परंपराओं के अनुसार आज भी दाउदी बोहरा समुदाय मे ये व्यावसायिक प्रथा जारी है।पसमांदा फ़ारसी का शब्द है, जिसका अर्थ है वो जो पीछे छूट गए।जिसे पिछड़े हुए भी कहा जाता है, वैसे मुसलमान जो क़ौम के दूसरे वर्गों की तुलना में तरक्क़ी की दौड़ में पीछे छूट गए, उन्हें पसमांदा कहते हैं। उनके पीछे रहने की वजहों में से एक बड़ा कारण जाति व्यवस्था बताई जाती है।बीजेपी की नज़र अब मुस्लिमों की इसी बड़ी आबादी पर है।देश में सबसे ज्यादा मुस्लिम यूपी में हैं।यहां इनकी आबादी लगभग चार करोड़ है।ज़ाहिर है इसमें सबसे ज़्यादा पसमांदा मुसलमान हैं।पारंपरिक तौर पर यहां मुसलमान आबादी समाजवादी, बहुजन समाजवादी पार्टी, लोकदल और कांग्रेस को वोट देती आई है। पिछले कुछ चुनावों के दौरान बीजेपी ने यहां गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों को खुद से जोड़ने में कामयाबी हासिल की है।अब वह पसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने का प्रयास कर रही है।इस्लाम में जाति भेद नहीं है, लेकिन भारत में मुसलमान अनौपचारिक तौर पर तीन कैटेगरी में बंटे हैं।अशराफ़, अजलाफ़ और अरजाल। अशराफ़ समुदाय सवर्ण हिंदुओं की तरह मुस्लिमों में संभ्रांत समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है. इनमें सैयद, शेख़, मुग़ल, पठान, मुस्लिम राजपूत, तागा या त्यागी मुस्लिम, चौधरी मुस्लिम, ग्रहे या गौर मुस्लिम शामिल हैं।अजलाफ़ मुस्लिमों में अंसारी, मंसूरी, कासगर, राइन, गुजर, बुनकर, गुर्जर, घोसी, कुरैशी, इदरिसी, नाइक, फ़कीर, सैफ़ी, अलवी, सलमानी जैसी जातियां हैं।अरजाल में दलित मुस्लिम शामिल हैं।ये जातियां अशराफ़ की तुलना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तौर पर पिछड़ी हैं। बीजेपी की नज़र अजलाफ़ और अरजाल समुदाय के इन्हीं मुसलमान वोटरों पर है जिन्हें पसमांदा कहा जाता है।पसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने के लिए बीजेपी ने लखनऊ में ‘पसमांदा बुद्धिजीवी सम्मेलन’ का आयोजन भी किया था।सम्मेलन में राज्य के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक मुख्य अतिथि थे।राज्य सरकार के मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी भी इसमें शामिल हुए थे।इस सम्मेलन में बीजेपी की ओर से राज्य सभा में भेजे गए जम्मू-कश्मीर के गुर्जर मुस्लिम नेता गुलाम अली खटाना भी शामिल हुए थे।अमेठी और रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में गुर्जर मुसलमानों की खासी आबादी है।देखना यह है कि भाजपा से मुसलमान कितना जुड़ पाते हैं।बीजेपी ने पसमांदा मुस्लिमों को अपने पाले में लेने की जो कोशिश शुरू की है,उसका असली मकसद क्या है? क्या बीजेपी की यह पहल पसमांदा वोटों के लिए है या ये फिर मुस्लिम विरोधी टैग हटा कर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को कोई संदेश देना चाहती है?इस सवाल पर उत्तर प्रदेश में आयोजित पसमांदा सम्मेलन के आयोजक और राज्य के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने पत्रकारों से कहा, पार्टी के विचारपुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय में विश्वास रखते थे। यूपी में पसमांदा यानी पिछड़ा मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग है।मुस्लिम आबादी में 80 फ़ीसदी इन्हीं की हिस्सेदारी है।मोदी और योगी जी के नेतृत्व में चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं के साढ़े करोड़ लाभार्थी इसी वर्ग के हैं। हमारी सोच है मुसलमानों की इस पिछड़ी आबादी के लिए काम किया जाए।बीजेपी की इस मुहिम का यूपी की राजनीति पर कितना असर होगा यह भी एक सवाल है।लेकिन कहा जा रहा है कि यूपी में जो लोग ये काम कर रहे हैं उनकी कोई ज़मीन नहीं है। इस राज्य का पसमांदा मुसलमान इनके साथ क़तई नहीं जाने वाला।कुछ बगैर जनाधार वाले लोग पसमांदा मुसलमानों की नुमाइंदगी करने में लगे हैं। ये लाभार्थियों के नाम पर लोभार्थियों की जमात खड़ी करने में लगे हैं।जो लोग पसमांदा मुसलमानों की नुमाइंदगी करने का दावा कर रहे हैं, न तो उनके पास ज़मीन है और न ज़मीर।इन बातों के बीच एक सवाल यह भी है कि क्या बीजेपी पसमांदा मुस्लिमों को एक बड़े वोट बैंक के तौर पर देख रही है या फिर उसका कोई और मक़सद भी है।कुछ भाजपा विरोधियों का मानना है कि बीजेपी दोतरफ़ा रणनीति अपना रही है।बीजेपी या संघ से जुड़े फ्रिंज ग्रुप एक तरफ़ तो मुसलमानों के ख़िलाफ़ अभियान चलातें हैं।इससे कट्टर हिंदुत्व का समर्थक वोटर खुश होता है और उसका कंसॉलिडेशन होता है।दूसरी ओर वह पसमांदा मुस्लिमों की ख़ैर-ख़बर लेने की कोशिश करते दिखते हैं। इस तरह वह लिबरल हिंदू वोटरों को ख़ुश करना चाहते हैं। इससे उनमें बीजेपी के ख़िलाफ़ नफ़रत कम करने में मदद मिलती है।