19 JANUARY 2023
सम्पादकीय
जेपी नड्डा और अमित शाह
जेपी नड्डा के कार्यकाल को बढ़ा दिया गया है,गृह मन्त्री और भाजपा नेता के रूप में अमित शाह भी अपना काम बखूबी कर रहे हैं।अमित शाह ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि कार्यसमिति ने सर्वसम्मति से जगत प्रकाश नड्डा के कार्यकाल को जून 2024 तक बढ़ाने को सहमति दे दी है।जेपी नड्डा और एक साल के लिए पार्टी के अध्यक्ष बने रहेंगे,उन्होंने इसे एक ‘शुभ समाचार’ बताया।बातों के क्रम में अमित शाह ने कहा कि जेपी नड्डा ने मोदी जी के करिश्माई नेतृत्व में उनकी लोकप्रियता का और विस्तार किया और बीसवीं सदी की सबसे बड़ी महामारी के दौरान भी संगठन के काम को जारी रखा और उसे सुदृढ़ किया।नड्डा के बारे में कहा जाता है कि सत्ता की उम्मीदों और ज़रूरतों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी निबाहने में वो एक ‘मिसाल’ हैं और सीमाओं को पार न करने की क्षमता रखते हैं।दो-दो बेहद शक्तिशाली नेताओं के साथ काम करना आसान नहीं, लेकिन जेपी नड्डा ने अपने लिए पार्टी में जगह बना ली है।पार्टी के दो दिनों की राष्ट्रीय कार्यसमीति की बैठक के दौरान जो कट-आउट्स लगे थे उसमें नरेंद्र मोदी के बाद सबसे ज़्यादा तादाद जिस शख़्स के पोस्टरों की थी वो थे जेपी नड्डा।बैठक की जगह में भीतर आने के गेट पर भी एक ओर मोदी का कट-आउट था तो दूसरी तरफ़ जेपी नड्डा का।नड्डा के नेतृत्व में पार्टी उनके गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में चुनाव हार गई, इसलिए भी चर्चाएं थी कि उन्हें अगला कार्यकाल नहीं मिलेगा उनके जन्म स्थान बिहार में सरकार हाथ से निकल गई। सवाल उठा कि क्या उन्हीं जेपी नड्डा को पार्टी का नेतृत्व फिर से सौंपा जाएगा जबकि इस साल नौ राज्यों और अगले साल आम चुनाव होने हैं?लेकिन उन्हें कार्यकाल मिल गया।जगत प्रकाश नड्डा का जन्म बिहार में हुआ।प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी के पटना कॉलेज से बीए किया।उनके पास वकालत की डिग्री भी है।अमित शाह ने नड्डा के कार्यकाल में किए गए साल भर के विस्तार की घोषणा करते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में बिहार में पार्टी को सबसे अधिक स्ट्राइक रेट मिला। एनडीए को गिनें तो उनके नेतृत्व में गठबंधन को महाराष्ट्र चुनाव में जीत मिली, उत्तराखंड, मणिपुर और असम में भी सफलता हासिल हुई, बंगाल में चंद सीटों की कमी से पीछे रहना पड़ा, तमिलनाडु में पार्टी ताक़त बनकर उभर रही है और गोवा में पार्टी ने हैट्रिक मारी है।नरेन्द्र मोदी प्रचारक भी रहे हैं और पार्टी प्रभारी भी।उन्हें इस बात का अहसास हो गया था कि एक बेहद ताक़तवर सरकार कहीं पार्टी को सरकार का पिछलग्गू न बना दे।अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी के रहने का कारण ही समाप्त हो जाएगा।जेपी नड्डा के राजनीतिक करियर की शुरुआत हिमाचल प्रदेश से हुई। 1990 के दशक में जब नरेन्द्र मोदी हिमाचल के प्रभारी थे तब से मोदी के साथ उनकी जान-पहचान रही है।2014 का चुनाव राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में लड़ा गया।इसमें बीजेपी की सफलता के बाद मोदी ने धीरे-धीरे पार्टी पर अपनी पकड़ मज़बूत की।उनके नेतृत्व में पार्टी ने पहले अमित शाह को अध्यक्ष चुना।वो दो बार पार्टी के अध्यक्ष रहे जिसके बाद जनवरी 2020 में पार्टी की कमान जेपी नड्डा को सौंपी गई। इससे पहले कुछ दिनों तक उन्होंने कार्यकारी अध्यक्ष की भूमिका भी निबाही थी।पार्टी की ओर से कहा जा रहा है कि महामारी की वजह से पार्टी में परंपरा के अनुसार, बूथ लेवल से लेकर ऊपर के स्तरों तक चुनाव का काम संपन्न नहीं हो पाया है जिसके लिए नड्डा की ज़िम्मेदारी को कुछ और समय के लिए बढ़ा दिया गया है।कार्यकारिणी के दौरान जेपी नड्डा के नाम का प्रस्ताव रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रखा जिसका सभी ने अनुमोदन किया।बिहार राज्य की तरफ़ से जूनियर तैराकी प्रतियोगिता में शामिल हो चुके जेपी नड्डा ने टेकनोलॉजी के इस्तेमाल में भी सहजता हासिल की है और कोरोना महामारी के दौरान वो इसके ज़रिए लगातार कार्यकर्ताओं के साथ संपर्क में रहे।इसमें उन्हें इसलिए भी आसानी हुई क्योंकि वो छात्र जीवन से लगातार नेताओं के संपर्क में रहे थे।हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लगातार तीन बार सदस्य रहे जेपी नड्डा के लिए पार्टी में दो मज़बूत लोगों के साथ काम करना इतना आसान नहीं रहा है।कुछ नेताओं की राय है कि उन्होंने अपने आप को बहुत हद तक अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय अध्यक्ष रहे कुशाभाऊ ठाकरे की तर्ज़ पर ढाल लिया है जो वाजपेयी, एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, प्रमोद महाजन जैसे ताक़तवर नेताओं के बीच काम करते हुए अपने आप को ग़ैर-ज़रूरी बातों में नहीं उलझाते थे।कुछ नेताओं का ये भी कहना है कि कुशाभाऊ से उलट नड्डा सोशल मीडिया पर ख़ूब ऐक्टिव रहते हैं और एक हद से अधिक पीछे रहने में भी यक़ीन नहीं रखते हैं।साथ ही बैठकों को लेकर सारी बातें वो बड़ी मेहनत से डॉक्यूमेंट करते हैं।उनका स्टाइल सबको साथ लेकर चलने का भी है जो उन्हें और अधिक आगे जाने में मदद करेगा।अमित शाह भी अपनी शैली से अपने मंत्रालय का काम और पार्टी का दोनों बखूबी देख रहे हैं।अपने कर्नाटक दौरे पर अमित शाह ने जदयू पर करारा प्रहार किया।उन्होंने कहा कि जदएस और कांग्रेस में कोई अंतर नहीं है,जो पार्टी सिर्फ 30-35 सीटें जीतती है और फिर ब्लैकमेलिंग पर उतर आती है उसे लंबे समय तक ज़िन्दा नहीं रखना चाहिए।अमित शाह के इस प्रहार के बाद राज्य के पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी ने उनपर पलटवार करते हुए उन्हें ‘सियासी गिरगिट’ तक कह दिया। भाजपा और जदयू के बीच इस तरह के वार-पलटवार से दोनों ही दलों के कार्यकर्ता तक हैरान हैं।जदएस को अभी भी राज्य में भाजपा के पोस्ट पोल पार्टनर के रूप में देखा जाता है। दिसंबर ही में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली में पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा के स्वास्थ्य का हालचाल लिया था। पीएम देवगौड़ा से मिलने के लिए उनके घर गए थे।माना जाता है अमित शाह कर्नाटक में मुस्लिम वोटों को बिखेरने की रणनीति पर भी काम कर रहे हैं। कांग्रेस हमेशा भाजपा को जदएस की बी टीम बताती है, इससे उसे मुस्लिम मत हासिल करने में मदद मिलतीहै।भाजपा का मानना है कि अगर वह यह साबित करने में सफल रहती है कि उसका जेडीएस से कोई लेना-देना नहीं है तो चुनाव में मुस्लिम मतों में कुछ बिखराव देखने को मिल सकता है।