आखिर लॉकडाउन में भी कहां से उपलब्ध हो रहा है फ्रलूड का नशा
मुज़फ्फरनगर, 10 अप्रैल (बु.)। लॉकडाउन के बाद त बाकू से जुड़े पदार्थों व शराब पर लगी रोक के बाद दिलबाग आदि गुटखा व शराब के लिए लोग बिलबिला तो रहे हैं, साथ ही साथ प्रशासन के नशे पर लगाम के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। सड़कों पर पन्नी चुगते युवकों को अब भी लूड आदि का नशा करते हुए साफ तौर पर देखा जा सकता है। नन्हीं-नन्हीं उम्र के बच्चे पन्नी में लूड डालकर उसका नशा करते हुए साफ देखे जा सकते हैं। हालांकि लॉकडाउन के चलते प्रशासन की अन्य कार्यों की जि मेदारी काफी बढ़ चुकी है, बावजूद उसके नशे के कारोबार पर भी प्रशासन को ग भीरता से ध्यान देना होगा। वैसे तो प्रशासन के नुमाइंदें नशे का कारोबार करने वाले लोगों के ठिकानों पर जा रहे हैं, लेकिन वो जिस तरह की कार्यवाही करके आते हैं, वो शायद मुंह खोलने लायक नहीं है और यदि मुंह खोल दिया गया, तो प्रशासन के कई कर्मचारियों व अधिकारियों की साख पर बट्टा लगता दिखाई पड़ेगा, इससे तो बेहतर है कि शासन से अनुरोध कर नशे के इन कारोबारों को खुली छूट ही क्यों न दे दी जाये, क्योंकि पाबंदी लगाने के बाद तो लॉकडाउन में भी लोग नशे से जुड़ी हर वस्तु को दुगुने दाम में चोरी छिपे बेचते हुए साफ दिखाई पड़ रहे हैं, जिससे शासन को दोहरी मार पड़ रही है, एक तो शासन पर किसी प्रकार का कोई अतिरिक्त टैक्स नहीं पहुंच रहा और दूसरा अरबों रुपये का व्यवसाय प्रभावित हो रहा है। ऐसे में सिर्फ सरकारी कर्मचारी व अधिकारी अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं। ऐसा भी हो सकता है कि समाचार पढऩे के बाद किसी अधिकारी की आंख खुल जाये और वह औपचारिकता निभाने के लिए एक आध जगह अपने छापे लगवाकर अपने कार्यों की इतिश्री कर लें, लेकिन वास्तविकता यही है कि चोरी छिपे नशे का कारोबार पूरी तरह फल फूल रहा है, बस फर्क सिर्फ इतना आया है कि शराब की बोतल के दाम में पव्वा और पांच रुपये का गुटखा 10 रुपये का बिकता देखा जा सकता है। अब देखना यह है कि शासन, कब तक नशे की सामान्य वस्तुओं दिलबाग, विमल, गुटखा, बीड़ी-सिगरेट आदि से पाबंदी नहीं हटाता और कब तक चोरी छिपे नशे का कारोबार करने वाले लोग अपनी जेबें गरम करते हैं।
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