काबिल कप्तान के बावजूद भी खाकी कई सवालों के घेरे में
मुज़फ्फरनगर, 25 अप्रैल (बु.)। लॉकडाउन के बाद से लगातार 32 दिनों से नगर की आम जनता वाहन चालान के रूप में जुर्माने का जुल्म तो झेल ही रही है, साथ ही साथ कई और जुल्मों से उन्हें होकर गुजरना पड़ रहा है, कई जुल्म तो ऐसे है, जिनकी कहीं कोई लिखा पढ़ी नहीं है, शायद पढऩे वाले समझ ही गये होंगे कि ऐसे कौन से जुल्म हो सकते हैं, जिनकी कहीं कोई लिखी पढ़ी नहीं हो सकती। जिले के कप्तान अभिषेक यादव यूं तो अपने आप में होनहार कप्तानों में गिने जाते हैं और यदि ऐसे काबिल कप्तान की पुलिस यदि जुर्माने से अतिरिक्त जनता पर जुल्म करती दिखाई पड़े, तो इस पर कई प्रश्न चिह्न खड़े हो जाते हैं। कभी हेलमेट पहने व्यक्ति पर हेलमेट का ही जुर्माना, तो कभी विद्युत विभाग के लाईन मेन पर हजारों का जुर्माना, कभी मूंग की दाल एक्टिवा से लेने जा रहे नई मण्डी के सीनियर सिटीजन पर हजारों रुपये का जुर्माना। ऐसे कई किस्से यदि ऐसे काबिल अधिकारी के रहते हो रहे हैं, तो समझिए नीचे का स्टाफ कहीं ना कहीं अधिकारी की आंख में धूल झोंक रहा है और यदि इसकी बानगी स्वयं कप्तान साहब को देखनी हो, तो अपना कोई आदमी सिविल ड्रैस में छोड़कर आसानी से देख सकते हैं कि लॉकडाउन की आर्थिक तंगी के दौरान अमीरों और गरीबों दोनों पर उनकी पुलिस किस-किस तरह के जुल्म ढ़ाह रही है। कभी-कभी तो चौराहे पर खड़े पुलिसकर्मी को देखकर ऐसा लगता है कि मानो मु यमंत्री ने पूरा जिला दरोगा को ही सौंप दिया हो, क्योंकि चौराहे पर खड़े दरोगा का रौब भी ऐसा ही होता है, जैसे वह सीधा मु यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स पर्कं में हो और यह स पर्कं यदि जनता की सेवा के लिए होता तो पुलिस की छवि ही कुछ ओर होती, लेकिन पिछले कुछ दिनों में जो जिले में हो रहा है, उसे बयां करने में हमें खुद ही शर्म आ रही है। पुलिस के फंदें में आज की तारीख में चाहे वृद्ध हो, चाहे कितना ही बड़े पद पर रहने वाला भाजपाई हो, एक बार बस सड़क पर फंसना चाहिए, फिर उसकी क्या दुर्दशा की जाती है, यह उसी से पूछिए जो पुलिस की गिर त में आया हुआ है। उसे बुरी तरह जलील करने के साथ-साथ उससे जुर्माना भी वसूला जाता है और वह जुर्माना भी ऐसा होता है, जिसकी रकम दे पाना किसी के वजूद में है और किसी के नहीं। पुलिस इस समय ना गरीब को देख रही और ना अमीर को। पुलिस का मकसद पकड़े गये व्यक्ति का आर्थिक व मानसिक रूप से शोषण करना रह गया है। ऐसे सैंकड़ों उदाहरण सामने आ जायेंगे, जिसमें पुलिस ने लोगों पर नाजायज जुर्माने तो किए ही हैं साथ ही साथ कुछ ओर भी किया है। जब जहां जैसा मौका लगा उसी हिसाब से कार्य को अंजाम दिया जा रहा है। ना जाने क्यों इतने काबिल अधिकारी के निर्देशन में भी ऐसे-ऐसे कार्यों को भी अंजाम दिया जा रहा है और किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। पिछले एक सप्ताह से पुलिसकर्मियों ने एक और नया फॉर्मूला अपना लिया है, वें दिन निकलते ही उन अनावश्यक दुकानों को खुलने का मौका दे रहे थे, जो केन्द्र व राज्य सरकार की गाइड लाईन में कहीं है ही नहीं। इन दुकानों के चित्र व समाचार कई बार प्रकाशित किए जा चुके हैं। चित्र व समाचार प्रकाशित होने के बाद पुलिसकर्मियों की और अधिक बल्ले-बल्ले होती दिखाई पड़ती है। इन्हीं समाचारों का रौब गालिब कर उक्त पुलिसकर्मी दुकानदार को बताते हैं कि देखा कितनी स ती चल रही है। उसके बाद दुकानदार पुलिस वालों के हाथ-पैर जोड़ता है, फिर पुलिसकर्मी व दुकानदार के बीच कुछ समझौते की बात हो जाती है और उन दुकानों को अगले दिन से थोड़ा नजर अंदाज कर दिया जाता है। हां एक आध बार उन दुकानों के आगे जाकर डण्डा फटकारने का धर्म पुलिस कर्मी बादस्तूर निभाते हैं, जिससे ऊपर बैठे अधिकारियों और सत्ताधारियों को ये अहसास जरा सा भी ना हो कि पुलिस लॉकडाउन में स ती का पालन नहीं करा रही। कुल मिलाकर लॉकडाउन के इस भारी भरकम संकट के दौर में भी खाकी, लोगों पर जुल्म ढहाने में कोई कौर-कसर नहीं छोड़ रही। बस हर व्यक्ति अपनी इज्जत बचाने को चुप होकर दबे शब्दों में एक दूसरे को खाकी की बुराई करता तो नजर आ रहा है, लेकिन किसी चक्कर में फंसने के डर से कोई सीधा शिकायत करने को तैयार नहीं होता, क्योंकि हर शरीफ आदमी थाने, कोर्ट, कचहरी के चक्कर काटने के डर से पुलिस अधिकारियों तक नहीं पहुंचना चाहता, बस वह एक दूसरे को मन की बात कह देता है कि आज पुलिस वाले ने मेरे से पांच सौ का नोट झाड़ लिया। दुकानदारों से तो पुलिस द्वारा हजारों-हजारों रुपये लेने की सूचना निरन्तर मिल रही है, लेकिन दुकानदार भी क्या करें, क्योंकि उसे 10-20 हजार रुपये देकर चैन से पैसे कमाने का मौका भी तो मिल रहा है, इसलिए वह भी इसे सुविधा शुल्क समझकर खामोशी से दे रहा है। कुल मिलाकर लॉकडाउन के खराब दौर में भी पुलिस आम व्यक्ति का उत्पीडऩ करती दिखाई पड़ रही है।