मुजफ्फरनगर, 9 अप्रैल (बु.)। शासन प्रशासन व आम लोग इस समय गरीबों का पेट भरने की चिंता में लगे हुए हैं और लाखों रुपये प्रतिदिन का राशन गरीबों को शासन व समाजसेवी संगठनों द्वारा पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इन प्रयासों के बीच कुछ लोग निम्न स्तर के कार्य करने से बाज नहीं आ रहे हैं। विभिन्न क्षेत्रों से शिकायत है कि गरीबों के नाम पर लिये गये राशन उन लोगों के घरों तक पहुंच रहे हैं, जिनके घरों की मासिक आय 40-40 हजार रुपये से ऊपर है। देश पर इस समय आज तक का सबसे बड़ा संकट मंडऱाया हुआ है और ऐसे में भी लोग अपनी घटिया हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी का ढोंग रचने वाले लोगों को शायद ईश्वर का कोई खौफ नहीं है और वे निडर होकर उक्त नाजायज काम को अंजाम दे रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि कुछ समाजसेवी उक्त राशन को अपने घरों में भर रहे हैं और कुछ का कहना है कि लोग अपनों के घर भर रहे हैं। राशन बांटते समय उन्हें गरीब आदमी नहीं दिख रहा, बल्कि जिससे अपनी जान पहचान है, उनके घर भरने का काम समाजसेवी संगठन के पदाधिकारी कर रहे हैं। ऐसे में उन लोगों की साख पर बट्टा लगता दिखाई पड़ रहा है, जो सरकार द्वारा दी हुई एक रुपये की वस्तु का इस्तेमाल भी अपने घर के लिए नहीं कर रहे। लोग उन्हें भी गलत निगाह से ही देख रहे हैं। ऐसे में समाजसेवी संगठनों के पदाधिकारियों को अपने कार्यकर्ताओं द्वारा बंटवाये जा रहे राशन की आधार कार्ड सहित लिस्ट लेनी चाहिए, नहीं तो समाज सेवा के इस कार्य में अच्छे लोगों के दामन भी दागदार होने से नहीं बच पायेंगे। जो लोग ऐसा सोच रहे हैं कि अपने वार्ड में व राशन उन लोगों को बंटवायें, जो चुनाव आने के बाद उन्हें वोट देने का योगदान करते हैं। यदि ऐसी महामारी के समय में भी कुछ लोग वोट की राजनीति कर रहे हैं, तो इससे बड़ा गुनाह शायद कोई नहीं हो सकता। देश पर आये इस संकट में हमें सिर्फ जरूरतमंद के घरों तक ही राशन पहुंचाना चाहिए, जिसकी थोड़ी भी गुजांइश अपना घर स्वयं चलाने की है, शायद उसके घर में भी राशन देने की आवश्यकता नहीं है। अभी जिले में हजारों मजदूर परिवार ऐसे हैं, जिनकी दैनिक आमदनी 300-400 रुपये प्रतिदिन थी, लेकिन कोरोना वायरस के संकट के कारण वे पिछले 15 दिनों से घर बैठे हैं और उनके बच्चे भूख से बिल बिला रहे हैं। वास्तव में कुछ मजदूरों के घरों में शायद एक टाइम भी रोटी पहुंच रही है, ऐसे परिवारों को ही वास्तव में राशन पहुंचना चाहिए, ना कि अपनी साख बनाने के लिए अपने चहेतों के घरों में कई-कई बार राशन पहुंचाया जाये, नहीं तो गरीबों की सेवा करने के इस पवित्र कार्य में कई सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों के दामन पर दाग लगने में देरी नहीं लगेगी।